नवजात अश्वेत शिशु के जन्म पर-4 / पुष्पिता
नवजात शिशु को
अपने वक्ष से लगाये
लीन है नवजात नीग्रो माँ
प्रथम बार
अपने 'माँ' होने के सुख में
एकात्म और तल्लीन है
कभी
खिड़की से घुस आयी
बर्फानी उजली रोशनी में
निहारती है शिशु का ललछौंह गेहुँआ अश्वेत वर्ण
आनंद से चिहुँककर
मूँद लेती है प्रसव से भारी पलकें
और सोचती है
दासता से मुक्ति के अश्वेत-जाति के योद्धाओं का
यही था रंग
स्वतंत्रता की लड़ाई में रत
दक्षिण एशियाई देशों के नेताओं का
यही था रंग
गाँधी और नेल्सन मंडेला
जैसे अहिंसक दूतों का
यही है रंग
अपनी गोरी माँ
और पति के श्वेत वर्ण के बावजूद
जैसे उसने लिया है अपने पिता की तरह गेहुँआ अश्वेत वर्ण
धरती की माटी का रंग
उसी तरह उसके शिशु ने निभाई है
परंपरा गर्भ में ही
वैश्विक कानूनी हक़ों के बावजूद
गोरों की निगाह में हिकारत का दंश आज भी
नित घोलता है स्मृतियों में
दासता की काली स्याही
खेतों में गिरमिटिया और कन्ट्राकी की जगह
भवनों, अस्पतालों, स्टेशनों की सफाई में बतौर मजदूर
जुटे हैं आज भी
वह अफ्रीका हो या दक्षिण एशिया
या फिर कैरेबियाई देश
उनके अधिकारी होने पर भी
उन्हें देखा जाता है मात्र कर्मचारी.
वैज्ञानिक सदी के
सत्ताधारियों की कोशिशों
और अंतर्राष्ट्रीय मानव-अधिकारों के संगठनों के बावजूद
गौरे आज भी बने हुए हैं
सर्वश्रेष्ठ
जबकि मछेरों
और लुटेरे योद्धाओं से अधिक
नहीं रहे कभी कुछ
और मानसिकता से
आज भी है वैसे ही भूखे और भुक्कड़.
शिशु जन्म-काल की कराह और चीखों से
सूज आये अपने करीयाये और पपड़ियाये ओठों से
चूम-चूम शिशु की पलकें
खोल देखती है
शिशु ने, पिता की नीली आँखों के बावजूद
लिया है अपनी माँ की ही आँखों का कजरारा वर्ण
कहीं अपनी नीग्रो माँ की तरह ही
उसकी आँखें भी न हो कजरौटा.
नव शिशु की माँ
हर्षित है कि
उसकी संतान के केशों का रंग है काला
उसके केशों की तरह ही.
पुख्ता होता है विश्वास
उसके गोरे पिता के बावजूद
संतान की दृष्टि
और अंतर्दृष्टि भी होगी
वैसी ही मर्म भेदी
दुनिया के सच को
भाँपने वाली
अपने नाना और माँ की तरह.