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नवोई को पढ़ते हुए / अन्द्रेय दिमेन्तियफ़ / वरयाम सिंह

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वर्ष की तीन ऋतुएँ — मात्र तीन दिन,
मेरा समस्त वैभव होते हैं तीन दिन ।

पहले दिन बहार थी तू मेरे लिए
आशाओं और रोशनियों की बहार ।

दूसरे दिन ग्रीष्म थी तू मेरे लिए
प्रेम की तेज़ आग ।
आग में झिलमिला रहा था तेरा सर्वस्व
तेरी बाहें, तेरे होंठ ।

तीसरे दिन पतझर थी तू मेरे लिए
और मैं खड़ा था घिरा तेरे झरते आँसुओं से ।
विदाई की पूरी ताक़त से भड़क उठी
आग तेरे प्रेम और दुखों की ।

उसके बाद आरम्भ हुआ शिशिर —
कुछ वर्षों के लिए बिछोह ।
उसके बाद तीखी ठण्ड में
सुन्न पड़ गया हमारा विवेक ।

नवोई -- अलिशेर नवोई — पन्द्रहवीं सदी के प्रसिद्ध उज़बेकी कवि

मूल रूसी से अनुवाद : वरयाम सिंह