नव वेला / रचना उनियाल
अतुलित आशाओं की किरणें, जीवन पथ पर बरस रही हैं।
कनक भावना की मणिमाला, प्राण-प्राण में सरस रही हैं॥
हिय में सोई हर गाँठों को,
नव पल का चंदन खोलेगा।
पीर भरे अवसादित क्षण को,
विमुख करेगा फिर बोलेगा॥
जी ले मानव, जी ले मानव, नवल रश्मियाँ परस रही हैं।
कनक भावना की मणिमाला, प्राण-प्राण में सरस रही हैं॥
अभिलाषा के बादल मन को,
धीरे-धीरे उकसाते हैं।
मानुष मन के मन आँचल पर,
दिनकर को ही जड़ जाते हैं।
धवल गगन का तू नृप प्राणी, सोच-सोच मन हरस रही हैं।
कनक भावना की मणिमाला, प्राण-प्राण में सरस रही हैं॥
नव वेला का आतिथेय बन,
नवल वर्ष का कर तन स्वागत।
झटपट-झटपट आ जा अब तू,
मध्य क्षणों को लाँघना आगत॥
उर अकुलाता बढ़ती जाती, प्रतीक्षायें भी तरस रही हैं।
कनक भावना की मणिमाला, प्राण-प्राण में सरस रही हैं॥