नशा कहाँ है वो ख़्वाब जैसा कि आज तक थी / निश्तर ख़ानक़ाही
नदी के सय्याल* रास्ते से लहू में चुपचाप हल हुआ दिन
ग़रूब* के वक़्त आस्माँ के किनारे-ज़ेरी* में खूँ-शुदा* दिन
मथी हुई मिट्टियों के अंदर छुपी हुई है शबीह* मेरी
मैं एक से दूसरी तरफ़ के सफ़र में हूँ दरदियान का दिन
तुम्हें भी तन्हाइयों में अपनी शरीक करना कहाँ था मुमकिन
कि सर्द बिस्तर पे रात मेरे बदन-बरहना* पड़ा रहा दिन
नशा कहाँ है वो ख़्वाब जैसा कि आज तक थी सबब से जिसके
घरों में काफ़ूर जैसी शामें, सफ़र में हलका सहाब-सा दिन
उदास कमरे में अपने तन्हा, बख़ील* लम्हों से लौ लगाते
इक और हमने गुज़ार दी शब, इक और हमने गँवा दिया दिन
1- सय्याल--तरल
2- ग़रूब --सूर्यास्त
3- किनारे-ज़ेरी--निचले किनारे
4- खूँ-शुदा --खून में परिवर्तित
5- शबीह-- सूरत
6- बदन-बरहना--नग्न
7- बख़ील--कंजूस