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नष्ट हो रहा जीवन / समझदार किसिम के लोग / लालित्य ललित
Kavita Kosh से
दौड़ती भागती जिंदगी में
हम आप यूं ही भाग रहे हैं
किसलिए
किसके लिए
सपनों की दुनिया को
साकार या मूर्त रूप देने के लिए
यदि दे भी दोगे
मूर्त रूप
तो
क्या कर लोगे हासिल
और
क्या पा लोेगे
जिंदगी जैसी है
वैसी ही रहेगी
इस मुर्दा शहर में
जहां संबंध पकते हैं
मदिरा की आंच में
और सरोकार ...
ओम भू स्वाहा !!!