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नसीब-ए-चश्म में लिक्खा है गर पानी नहीं होना / शहराम सर्मदी
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नसीब-ए-चश्म में लिक्खा है गर पानी नहीं होना
तो क्या ये तय है अब रंज-ए-पशेमानी नहीं होना
सकूँ से जा लगेगी दिल की कश्ती अपने साहिल से
कि इस बरसात में दरिया को तूफ़ानी नहीं होना
सभी कुछ तय-शुदा मा'मूली जैसा होने वाला है
किसी भी वाक़िए को वज्ह-ए-हैरानी नहीं होना
जुनूँ में मुमकिना हद तक रहेगा होश भी शामिल
मिरी जाँ बे-ज़रूरत कार-ए-नादानी नहीं होना
हमीं उन ख़ुश-नसीबों में से हैं, जिन के नसीबों में
ख़ुदा ने साफ़ लिक्खा है परेशानी नहीं होना