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नसीमे-सुब्ह का झोंका इधर नहीं आया / राजेंद्र नाथ 'रहबर'
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नसीमे-सुब्ह का झोंका इधर नहीं आया
जो देता दिल को दिलों की ख़बर नहीं आया
लिपट के जिस से तिरे दर्द-मन्द रो लेते
वही दरख़्त सरे-रहगुजर नहीं आया
भरोसा इतना मुझे उस की दोस्ती पर था
कि उस के हाथ का खंज़र नज़र नहीं आया
बस एक बार झलक उस की हम ने देखी थी
वो उस के बाद मुकर्रर नज़र नहीं आया
अलख जगाते जहां, हम सदा करते
बहीत तलाश थी जिस की वो दर नहीं आया
रहे-अदम के मुसाफ़िर तिरा ख़ुदा-हाफ़िज़
कि इस सफ़र से कोई लौट कर नहीं आया।