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नसीम है तेरे कूचे में और सबा भी है / मोहम्मद रफ़ी 'सौदा'

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नसीम है तेरे कूचे में और सबा भी है
हमारी ख़ाक से देखो तो कुछ रहा भी है

तेरा ग़ुरूर मेरा इज्ज़ ता कुजा ज़ालिम
हर एक बात की आख़िर कुछ इंतिहा भी है

जले है शम्मा से परवाना और मैं तुझ से
कहीं है मेहर भी जग में कहीं वफ़ा भी है

ख़याल अपने में गो हूँ तराना-संजाँ मस्त
कराहने के दिलों को कभी सुना भी है

ज़बान-ए-शिकवा सिवा अब ज़माने में हैहात
कोई किसू से बहम दीगर आशना भी है

सितम रवा है असीरों पे इस क़दर सय्याद
चमन चमन कहीं बुलबुल की अब नवा भी है

समझ के रखियो क़दम ख़ार-ए-दश्म पर मजनूँ
कि इस नवाह में ‘सौदा’ बरहना-पा भी है