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नहर (3) / मदन गोपाल लढ़ा
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नहर का किनारा
कल-कल बहता पानी
नहर की मुंडेर पर
टंकियाँ भर रहे
मेरे गाँव के नौजवान
अपनी मजदूरी के लिए
तो क्या मैं बेकार बैठा हूँ?
मैं भी तो भर रहा हूँ
टंकियाँ
मेरे मन की
प्रकृति की सुन्दरता से
एक कविता के लिए।