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नहीं अच्छी बहुत नजदीकियां कुछ फ़ासला करते / रंजना वर्मा

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नहीं अच्छी बहुत नजदीकियाँ कुछ फ़ासला करते
हैं ख़ंजर हाथ मे जिन के वही फूला फला करते

जहाँ तुम हो वहाँ शायद कहीं ठंढी हवा भी हो
हमारे गिर्द हैं झोंके सदा लू के चला करते

दहकती है जमीं ऊपर फ़लक से आग गिरती है
हमारे पाँव हरदम रेगजारों में जला करते

ज़माना बेमुरव्वत है नहीं करता वफ़ा कोई
कहें क्या दूसरों की लोग अपनों को छला करते

बड़ी दुश्वारियाँ हैं जिंदगी दोज़ख बनी जैसे
हैं धारे रौशनी के अब निगाहों को खला करते

मुहब्बत करने वाले हैं कहाँ शंकर सरीखे अब
बदन पर राख महबूबा की जो हरदम मला करते

नहीं कौशलपुरी कोई फ़क़त लंका है रावण की
जहाँ शैतान हैं जुल्मो सितम करते पला करते