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नहीं करूँगा कभी किसी का / हनुमानप्रसाद पोद्दार

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  (राग शिवरञ्जनी-तीन ताल)

 नहीं करूँगा कभी किसी का अब तन-मन-धनसे अपमान।
 सबमें सदा देख प्रभुको, मैं सदा करूँगा शुचि समान॥
 परुष-व्यंग्य-निन्दा वचनोंका नहीं करूँगा मैं व्यवहार।
 सदा करूँगा सबका सुधामयी हित-वाणीसे सत्कार॥
 सबमें प्रभुके मैं अनुपम गुण-गण ही देखूँगा सब ओर।
 नमन करूँगा मैं सबके पद-कमलोंमें, हो भाव-विभोर॥
 प्राणि-पदार्थ सभी देंगे फिर मुझको नित्य परम आनन्द।
 क्योंकि सभीमें दीख पड़ेंगे मुझे नित्य सत्‌‌-चित्‌‌ आनन्द॥