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नहीं मिला सकता हाथ / अरविन्द चतुर्वेद
Kavita Kosh से
एक साधारण आदमी की तरह
मैं लिपटा रहा भूख से-बेगारी से
मेहनत-महामारी से
बेशर्म की तरह, आदत से लाचार
अब भी मैं करता हूँ प्यार
किसी नारी से
घृणा व्यभिचारी से
मैं नहीं मिला सकता हाथ किसी व्यापारी से।
जानता हूँ
सफ़लता के लिए घातक हैं ये आदिम आचार
मेरे हिस्से आती है हार
इसीलिए बार-बार
फिर भी मैं जागता हूँ, सूतता हूँ
और उनकी जीत पर मूतता हूँ।