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नहीं सूझती राह / बृजेश नीरज

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रोशनी की तलाश में
बहुत दूर आ गए हम
नहीं मिली अँधेरों से निजात

वह छोर कहीं पीछे छूट गया
जहाँ उगता है सूरज
होती है सुबह

दुनिया के अन्धेरे कोने के
बियाबान में
धरती, आकाश, पेड़-पौधे, सबका
सिर्फ एक रंग-काला

घुप्प अन्धकार में होता है
दिशा-भ्रम
स्याह कोने में गुम हो गई
रोशनी की ओर जाने वाली राह