भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नहीं / भारत भूषण अग्रवाल
Kavita Kosh से
क्या मेरे भाव
तुम्हें ऐसे घेर सकते हैं
जैसे मेरी बाहें ?
क्या मेरे शब्द
तुम्हें ऐसे छू सकते हैं
जैसे मेरे ओठ ?
क्या यह निर्जीव लेखनी
वैसा गीत लिख सकती है
जैसा मैं एक दिन
तुम्हारे तन पर रचूँगा ?
रचनाकाल : 10 फ़रवरी 1966