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नांगी पिरथी ढ़काणी / महेंद्र सिंह राणा आज़ाद

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चौमासी कुहेड़ी नांगी पिरथी ढ़काणी
धरती की लाज अब नि रै बिराणी।

द्वी-चार मैना यी कुहेड़ी ढ़काली
आवा अग्वाड़ी अब हमुन भी बचाणी।

चौमासी कुहेड़ी द्वी-चार मैना ही राली
धै लगावा अब त बारमासी खुज्याणी।

जाग रे भैजी, दादा-काका अर दीदी
कर उदैँकार अब सैरी दुनिया जगाणी।

हाथु मा हाथ द्ये, अर खै ल्ये कसम
इत्गया सुन्दर बनाण कि दुनिया दिखाणी।