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नाई बहार / 12 / भिखारी ठाकुर

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संदर्भ:

संस्कार, कर्मों और पूजा के अवसर पर प्राप्त दान में बराबर हिस्सेदारी का दावा करते हुए तर्क प्रस्तुत किया गया है।

वार्तिक: बादशाह, राजा, जमींदार, गृहस्थ किहाँ दरखास:

हमनी का काग के चण्डाल, कुत्ता के नीच आ गाय के देवता कहिला-मानीला जा। श्राद्ध-कर्म में कागबल निकालल जाला। ब्राह्मण का कहला से जजमान तीन भाग बराबर बना के नीमन चाहे जबून बेसी कमी ना लागें। गाय के पेट बड़ा, कुत्ता के पेट छोटा आ काग' क पेट बहुत छोटा होखेला। लेकिन हिस्सा बेसी-कमती ना लागे। बिना मंगले बहुत दिन से आज तक ले हो गइल बा, ब्राह्मण का हुक्म से जजमान तीनों पट्टिदार के भोजन करावल बाड़न। आज सब केहू का देखला से लउकत बा जे श्राद्ध-कर्म में तीन जाति का शुद्ध कइला से शुद्ध होखत बा, नाई, महापात्र आ ब्राह्मण का आज केहू विद्वान दाता नइखन कहत जे तीनों जना अनाज भोजन करेलन, वस्त्र पहिरेलन, लोटा-छिपा-द्रव्य से काम चलावेलन। एह तीनों जना के बराबर हक देना चाहीं। विवाह में सगुन में रुपया, सुमंगली, गवना कराई नेग में से जजमान ब्राह्मण के दो हिस्सा, नाई के एक हिस्सा देत बाड़न आ देत आवत बा लोग, बहुत दिन से-आज तकले जब विवाह में पट्टीदार बना देहल, से श्राद्ध-पूजा में पट्टीदार ना मोकरर कइलऽ ह यदि इवो कइलऽ, बिबाह में भइल? श्राद्ध-पूजा में काहे ना भइल। जे भइल, ओह में से दू हिस्सा एक हिस्स काहे भइल, बरोबर होना चाहीं-जइसे काग, कुत्ता आ गाय के भाग बराबर लागेला, तइसे।

वार्तिक:

सराध कर्म में काग बल निकालल जाला। काग, कुत्ता आ गाय तीनों के भाग बरोबर दिआला हमनी का काग के चंडाल, कुत्ता के नीच, गाय के देवता कहत बानी, मानत बानी, जानत बानी; तदपि तीनों भाग बरोबर देत बानी। बेसी-कमती भाग ना लागे। सराध कर्म तीन जाति से सुद्ध होखेला-नाई, महापातर आ ब्राह्मण जइसे काग, कुत्ता आ गाय के बोबर भाग लागेला, तइसे नाई, महापातर आ ब्राह्मण के बरोबर भाग होना चाहीं।
 
वार्तिक:

श्राद्ध कर्म के अवसर पर काग, गाय और कुत्ता के लिए पिण्डदान के बाद काग बल दिया जाता है। एक ही साथ सब चीजों को मिलाकर अलग-अलग बराबर हिस्सा तीनों को दे दिया जाता है। श्राद्ध कर्म तीनों जातियों से शुद्ध होता है-नाई, ब्राह्मण और महापात्र। इसलिए इन तीनों जातियों का हिस्सा बराबर होना चाहिए. इतने हीं का वजह से हम भोजपुरी भाषा में इसको लिख रहे हैं:-

दोहा

भोजपुरी भाषा में, भाषन करत भिखरीदास।
कुतुबपुर दियरा बासी, चार बरणा के पास॥

सवैया

पक्षी में काग चण्डाल कहावत, पशु में नीच कहावत कुत्ता।
गाई के माई कहे अगराई के, पूजत बारन चार सपूता॥
भाग बरोबर तीनों बनाकर, कर्म सराध में देत बहुता॥
अधिका-कमती के 'भिखारी' हिसाब कहीं, हम खोजत बानी सबूता॥

2.

भोजन पत्तल में मंगवां के एकठे सनाता एकठे सनाई.
काग कुत्ता ओही साथ में गाई के भाग बरोबर देत बनाई॥
उँच-नीचाई के भेद कहाँ कहिआ कब से नहीं परत जनाई.
ब्राह्मण बेसी बेसी, महापातर 'भिखारी' कहें कमती काहे नाई॥

3.

सवैया

नव मास के त्रास, छोड़ावत नाई, नहरनी से काट कहावर लावत।
तादिन के सुधि याद करऽ, मड़वा बीच सादी में सिख बनावत।
पित्र परेत दुनो जन के जब होत सराध त, बत्ती जलावत।
कहे नाई 'भिखारी' दया करऽ भाई सो, नाई कके बा काहे अजमावत।
नाई भाई यह पत्र पढ़ऽ, अति प्रेम होत उपजावत है।
ई जाति के उन्नति सुसान्ती से होई, धरम धीरज जनावत है।
"सुची वेद, पुरान, कथा, इतिहास के साइनबोट लखावत है।"
घर तीर्थ माहीं पताका लिये कर, विश्व विमोद बढ़ावत है।