तब ज्य़ादा 
सताते हैं, 
नाउम्मीदी के साये 
जब
आशाओं से मुठभेड़
होती है नकारात्मकता की।
एक क्षण में ही
मुरझा जाते हैं 
विश्वास से भरे पुष्प।
संघर्षं लगता है ठिठुराने 
सर्द रातों में
गहरी नींद से 
उठ उठकर
बार-बार
आस-पास का माहौल 
जाँचता-परखता है।
वाक़ई
खोना है उम्मीदों का
जीवित होते हुए 
भी 
मृत घोषित होने जैसा।