भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नाकों तक डूबा परिवेश / गुलाब सिंह
Kavita Kosh से
नाकों तक डूबा परिवेश
जेब और जीभों के
बीच फँसा देश।
राहत है
ओठों पर
मन्द मुस्कराहट है
कोठों पर
सुनें रात
राष्ट्र के लिए
शुभ संदेश।
बाढ़ के मसायल पर
चार दशक
डूबे हैं
फ़ाइल पर
सूखे का संकट है
बूड़े का
क्लेश।
पिछलग्गू पानी ने
खतरे के हर निशान
छुए
राजधानी में
अब बचाव के लिए
चुनाव कौन
शेष?