लौट आये हम
घुटन की नागदह से लौट आये!
गो कि अब भी शेष है कुछ दंश
जो कल तक गड़े थे
फन उठाये जहां कुछ आत्मीय-से
विषधर खड़े थे
अंतरंगों की
उसी अंतिम सतह से लौट आये!
सर्पगंधा बांसुरी के मंत्र
अब भी टेरते हैं
खुरदरे अहसास आहत, त्रस्त
मन को घेरते हैं
खैर, अब हम
उस विजन-बुनती जगह से लौट आये!
चंदनों में डोलतीं उन्मुक्त
विषकन्या हवाएं
या कि आहत मर्म में लिपटी हुई
आकुल कथाएं
कौन जाने हम
यहां किसकी वजह से लौट आये!