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नाच का नाता / नंदकिशोर आचार्य
Kavita Kosh से
ताधिन ताधिन ताथई ताथई ताधिन ता .....
झनझननननन झनझनननननन झनझनझनननन झन .....
बजता है तबला, थिरकते है पाँव,
नाचते हैं घुँघरू
द्रुत, चपल, चक्राकार, तन्मय
-मानो नाच सृष्टि हो !
नाचे जा रही है वह
-बल्कि नाच होती जा रही है
बेखबर कि उस के नाच होते जाने को
देखा, भोगा जा रहा है
उस सभा से
जिस का नाच से नाता नहीं कोई।
अचानक नाचते घुँघरू का इक दाना
टूट कर छिटकता है
जा ठहरता है दूर कोेनो में,
नाचे जा रही है वह
सभा देखे जा रही है।
अब क्या जानती है वह
जो हो गयी है नाच
और वह सभा
जिसे उस के नाच होने देखने में
नहीं कोई आँच
कि उस दाने का
नहीं, उस घुँघरू के दाने होने का
क्या हुआ ?
ताधिन ताधिन ताथई ताधिन ता ....
(1976)