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नाच गुजरिया नाच ! / बुद्धिनाथ मिश्र

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नाच गुजरिया नाच !
कि आई कजरारी बरसात री!
सतरंगे सपनों में झूमी
आज अन्हरिया रात री !

गरज-लरज बरसे रे ! जवानी में
जब बौराया बादल
मिटी प्यास क्या नहीं पपीहे तेरी ?
ले पी-पी पागल ।
पिघल-पिघल धुल गया
जब दुख का सारा काजल
शरमा मत, फहरा ले आज तू
अपना हरियाया आँचल ।

रुनुक-झुनुक रुनझुन की लय पर
थिरके तेरे गात री !
थिरक गुजरिया थिरक
कि आई कजरारी बरसात री !

जिस प्यासे को तृप्त न कर पाया
जग का कोई सागर
कर दे उसको बेसुध इक पल में
उलीच मधु की गागर ।
तड़प-तड़प रह जाए जो देखे
तुझको तेरा ही नागर
इतरा ले बन जाए आज
यह हरसिंगार सपनों का घर ।

धिनक-धिनक ताधिन्
मृदंग पर फुदके कल का प्रात री !
फुदक गुजरिया फुदक
कि आयी कजरारी बरसात री ।

सिहर-सिहर जब वही पुरबिया
लहराई धरती सारी
चली तुनककर कहाँ अरी ओ !
जब मेरी आई बारी ।
बिखरा दे कुछ किरण ख़ुशी की
गली-गली क्यारी-क्यारी
नाचें बन के मोर-मोरनी
तू पगली कोयल गा री !

छनन-छनन छम्-छम् से
छलके रंगों के स्वर सात री !
छलक गुजरिया छलक
कि आई कजरारी बरसात री !