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नाजायज़ फेंके हुए बच्चों की तरह / एन. मनोहर प्रसाद
Kavita Kosh से
दलित सदैव रहे
नाजायज़ फेंके हुए बच्चों की तरह
पूरी क़ौम से उपेक्षित
समूचे समाज से परित्यक्त
सभी धर्मों द्वारा शोषित
राजसत्ता द्वारा विस्मृत
दलितों को दिए गये ज़ख़्म
छोड़ दिया गया उन्हें बेसहारा
ख़ुद ही करने को अपनी मरहम-पट्टी
अब हमारे बीच आयी हैं
सौम्य रूप में कार्यरत
सम्भ्रान्त स्वैच्छिक संस्थाएँ
जो दूसरों द्वारा होती हैं संचालित—
हमारे नाम पर,
ताकि वह खा सकें उसका फल
रसदार गूदा
और हमारे लिए छोड़ दें
गुठली और छिलके
यह कहते हुए कि
'फलों का सबसे पौष्टिक तत्त्व इन्हीं में है।'