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नाटक / श्रवण कुमार सेठ
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चलो खेलते हैं इक नाटक
मन का आज खोल दें फाटक
हवा बनो तुम बनूँ मैं बादल
आँख बनो तुम बनूँ मैं काजल
पेंड़ बनो तुम बनूँ मैं नीड़
चिड़ियों की जुटाऊँ भीड़
बनके सूरज दिन में दमको
चन्दा बन मैं रात को चमकूँ
धूप बनो तुम बनूँ मैं छाँव
नदी बनो तुम बनूँ मैं नाव
फूल बनो तुम बनूँ मैं काँटे
रहते संग सदा मुस्काते
मैं दीपक तू बने उजाला
गुथे रहें हम बनके माला
चलो खेलते हैं एक नाटक
मन का आज खोल दें फाटक।