नानी की नाव / हरेंद्रनाथ चट्टोपाध्याय
नाव चली, नानी की नाव चली,
नीना की नानी की नाव चली!
लंबे सफ़र पे
आओ चलो,
भागे चलो
जागो चलो,
आओ, आओ!
नाव चली, नानी की नाव चली,
नीना की नानी की नाव चली!
सामान घर से निकाले गए,
नानी के घर से निकाले गए,
इधर से उधर से निकाले गए,
नानी की नाव में डाले गए-
एक छड़ी-एक घड़ी
एक झाडू़-एक लाडू़,
एक संदूक-एक बंदूक,
एक सलवार-एक तलवार,
एक घोड़े की जीन-एक ढोलक, एक बीन,
एक घोड़े की नाल-एक मछुए का जाल,
एक लहसुन, एक आलू-एक तोता, एक भालू
एक डोरा, एक डोरी-एक बोरा, एक बोरी,
एक डंडा, एक झंडा-एक हंडा, एक अंडा,
एक केला, एक आम-एक किशमिश बादाम,
एक पक्का, एक कच्चा-एक बिल्ली का बच्चा,
नाव चली, नानी की नाव चली,
नीना की नानी की नाव चली!
फिर एक मगर ने पीछा किया,
नानी की नाव का पीछा किया,
पीछा किया तो फिर क्या हुआ,
फिर क्या हुआ, हाँ फिर क्या हुआ?
चुपके से पीछे से, ऊपर से नीचे से
एक-एक सामान खेंचा गया-
एक कौड़ी छदाम,
एक केला, एक आम,
एक कच्चा-एक पक्का,
एक बिल्ली का बच्चा,
एक हंडा-एक अंडा,
एक झंडा-एक डंडा,
एक बोरा-एक बोरी,
एक डोरा-एक डोरी,
एक तोता-एक भालू,
एक लहसुन-एक आलू,
एक मछुए का जाल
एक घोड़े की नाल,
एक ढोलक-एक बीन,
एक घोड़े की जीन,
एक तलवार-एक सलवार,
एक बंदूक-एक संदूक,
एक लाडू़ एक झाडू़,
एक घड़ी-एक छड़ी,
मगर कर रही थी क्या नानी?
कुछ ना जानी, कुछ ना जानी?
नीना की नानी थी बुड्ढी बहरी,
नानी की नींद थी इ...त...नी गहरी!
इ...त...नी गहरी, कि...त्ती गहरी?
नदिया से गहरी, दिन दोपहरी!
रात की रानी, ठंडा पानी,
गरम मसाला पेट में डाला,
खो गई चाबी, खुला ना ताला!
-साभार: उड़ान