नानी के घर / शशि पाधा

चंद्रयान पर बैठ आज मैं
नानी के घर आई हूँ
धरती माँ ने भरी जो झोली
सब भेंट बाँध के लाई हूँ।

दूर देस से रातों को नित
देखा करती चन्दा मामा
माँ की लोरी, कथा पिता में
तुम ही तुम थे प्यारे मामा

बरसों से जो पहुँच न पाई
माँ की राखी लाई हूँ
तेरे माथे रोली चन्दन
आज सजाने आई हूँ

घटते-बढ़ते तुझे देख कर
माँ को चिंता होती थी
देख तेरी वो छवि सलोनी
सुखद चैन से सोती थी

मटकी भर जो भेजी माँ ने
खीर खिलाने आई हूँ
आशीषों से भरी पिटारी
बड़े दूर से लाई हूँ

खोल के गठरी देख तू मामा
और क्या माँ ने भेजा है
 थोड़ी सी आँगन की मिट्टी
 और तिरंगा भेजा है
  
स्वीकार करो सब भेंट ओ मामा
 बड़े गर्व से लाई हूँ
  भारत माँ का गौरव गान
  तुझे सुनाने आई हूँ

द्वार खोल एक बार मैं अपनी
नानी का चरखा तो देखूँ
जितना सूत कता है अब तक
सब अपनी गठरी में भर लूँ

जाते ही पूछूँगी माँ से
बूझो क्या-क्या लाई हूँ
नानी और मामा का सारा
प्यार बाँधके लाई हूँ ।

खुश हूँ आज, कितनी खुश हूँ
नानी के घर आई हूँ
 मामा से मिलने आई हूँ
(23 अगस्त , 2023)
*चाँद पर चंद्रयान के सफलतापूर्वक पैर रखने का दृश्य देखते हुए मन में उमड़े उदगार मैंने शब्दों में बाँध लिये।

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