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नापाक सुबह / बैर्तोल्त ब्रेष्त / उज्ज्वल भट्टाचार्य

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रुपहला पहाड़ी पीपल,
इलाके की जानी-मानी सुन्दरी
आज एक ढली हुई बुढ़िया.

झील
नाबदान के पानी की गढ़ैया, छूना मत !
फ़ूशिये और स्नैपड्रैगन फूलों के बीच सस्ती और छिछली सी.
क्यों ?

आज रात सपने में मैंने उँगलियाँ देखीं, मेरी तरफ़ उठी हुईं
जैसे कि किसी कोढ़ी की ओर ।
वे थीं लस्त-पस्त
वे थीं कटी-फटी ।

नादानो ! चीख़ उठा मैं
अपराध बोध के साथ !

1953
 
मूल जर्मन भाषा से अनुवाद : उज्ज्वल भट्टाचार्य