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नामहीन / शिवशंकर मिश्र
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तुम्हारा कोई नाम नहीं
तुम्हें सभी, सब जगह
समान रूप से पुकारते हैं, माँ
इसीलिए तुम्हें सभी ही प्रिय हैं
इसीलिए तुम्हें किसी की गाली नहीं लगती।
नामहीन, हृदय में तुम्हें ही लिए हुए, माँ
उस दिन मैं जुलूस में शामिल हो गया
मैं जुलूस में सब से पीछे था
मैं पीछे था, इस का मुझे दुख नहीं था
क्योंकि तब मेरी जिम्मेदारी सब से अधिक थी
मेरी आवाज में अनुशासन था
ओर सम्पूर्ण पंक्ति की शक्ति थी--
दर्प था।
मुझे दुख नहीं था-
क्योंदकि तब मेरा भी कोई नाम नहीं था।