भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नाम उसी का नाम सवेरे शाम लिखा / बशीर बद्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नाम उसी का नाम सवेरे शाम लिखा
शे’र लिखा या ख़त उसको गुमनाम लिखा

उस दिन पहला फूल लिखा जब पतझड़ ने
पत्ती-पत्ती जोड़ के तेरा नाम लिखा

उस बच्चे की कापी अक्सर पढ़ता हूँ
सूरज के माथे पर जिसने शाम लिखा

कैसे दोनों वक़्त गले मिलते हैं रोज़
ये मंज़र मैंने दुश्मन के नाम लिखा

सात ज़मीनें, एक सितारा नया नया
सदियों बाद ग़ज़ल ने कोई नाम लिखा

’मीर’, ’कबीर’, ’बशीर’ इसी मक़तब के हैं
आ दिल के मक़तब में अपना नाम लिखा

(मई १९९८)