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नाम बताओ / रामेश्वर दयाल दुबे

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मैं उठता हूँ, वह उठती है,
मैं चलता, वह चलती।
मैं दौडूँ तो साथ दौड़ती,
सदा साथ ही रहती।
पकडूँ तो मैं पकड़ न पाऊँ,
अजब खेल है उसका।
हाथ न आवे, साथ न छोड़े,
यह स्वभाव है किसका?
जल्दी से तुम नाम बताओ,
नहीं समझ में आया?
मैं ही तुम्हें बताए देता,
वह है मेरी छाया।

-साभार: नंदन, मई, 1994, 30