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नायक / राजेश कमल

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कोई बहरूपिया है
कोई विदूषक
कोई मूर्ख है
तो कोई हत्यारा
धूर्त भी हैं यहाँ
और बलात्कारी भी
होड़-सी मची है इनमें हमारे नायक बनने की
हमारा ठप्पा भी इन्हीं में किसी को नसीब होता है
हम तर्क-कुतर्क भी इन्हीं के पक्ष-विपक्ष में गढ़ते रहते हैं

इस विकल्पहीन समय में माफ़ करना भगत सिंह
हम भी उसी मुल्क के नागरिक है जिसकी शान हो तुम