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नारद का पछतावा / सुरेश सलिल

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नारद के भ्रम ने आहत किया था लय और नाद को ।

क्षत-विक्षत हालत में
देखा था उन्हें पथ के दोनों ओर
खून और मांस के कीचड़ में छटपटाते
अन्तिम सांसें लेते

और बहुत पछताए थे नारद
अपनी भूल-ग़लती पर
(पछतावा भूल-ग़लती के अहसास पर ही होता है)

नारद मात्र वादक थे, गायक थे
शब्द सम्पदा उन्हें मिली थी श्रुति परम्परा से,
कवि यदि होते, तो
भ्रम के शिकार नहीं
घमण्ड से भरे होते

कोई परवाह नहीं होती उन्हें
लय और नाद की जघन्य हत्या की ...