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नारीवादी हो रही है गौरी / रंजना जायसवाल

नारीवादी हो रही है ससुरी
तुड़ाती है खूँटा
चिल्लाती है ऐसे
रखी जा रही हो
गले पर छूरी
करूँ क्या इसका
मारूँ बेच दूँ
या छोड़ दूँ भटकने को
-बड़बड़ा रहा था ग्वाला
हाथ में लिए 'आक्सीटोसिन ' का इंजेक्शन
देख -देखकर खा रही है पछाड़े गौरी
आँखों से झर रहे हैं आंसू
-'कब तक सहूँ -इ ..इतनी पीड़ा
धमनियों से निचुड़ता है रक्त
कमजोर और बाँझ हो रही हूँ
बछड़े पर भी नही दे सकती ध्यान
फिर भी बागी मेरा नाम
जाऊँ भी तो कहाँ
हर कदम पर नया कसाई
धिक्कार कि मुझे माँ कहता है
मानता है धर्म अर्थ मोक्ष का आधार
जबकि दूध ,संतान
गोबर, मूत्र, मांस,चमड़ा सब बेचता है'
हा हा करती गौरी की देह में घुस गयी है सुई
वह गिर पड़ी है
पर थनों से फूट पड़ा है दूध
उधर उसके पक्ष में हो रहे हैं
सभा –सेमिनार गोष्ठियां
बहसबाजियाँ और राजनीति
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