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नारी / शब्द प्रकाश / धरनीदास
Kavita Kosh से
नारी वटवारीकरै, चारि चौहटे माँहि।
जो वहि मारग हो चले, धरनी निबहै नौहि॥1॥
धरनी धरनी-वश भये, जेते जीव अजान।
नारी तजि हरि को भजै, सो नर चतुर सुजान॥2॥
धरनी तिरिया त्यगिये, अपनी होय कि आन।
मिलत बिलाई वापुरी, बाघिन होत निदान॥3॥
हरि हाथे करवेरिया, धरनी सकै छोड़ाय।
जो बैयर के वश परै, बांधे जन्म सिराय॥4॥
दामिनि ऐसी कामिनी, फाँसी ऐसो दाम।
धरनी दुइते वांचिये, कृपा करेँ जो राम॥5॥
आये तो हरि भक्ति लगी, धरनी यहि संसार।
बैयर के वश होइ रहै, विसरो सिरजनहार॥6॥
धरनी व्याही छोड़िये, हरि-जन देखि लजाय।
वेश्या-संग विराजिये, भक्ति अंग ठहराय॥7॥
कन्या है संसार सब, वर है कर्त्ता राम।
धरनी भजि है मर्म तजि, ताको सरिहै काम॥8॥