भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नालों में है असर मगर फ़र्क़ असर असर में है / मेला राम 'वफ़ा'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नालों में है असर मगर फ़र्क़ असर असर में है
नींद वहां है चैन की दर्द यहां जिगर में है

मस्त तिरी निगाह के शाकिए-बेशो-कम नहीं
जिस को मिला है जिस क़दर खुश वो उसी क़दर में है

दिल जो गया तो क्या मलाल उस की तलाश क्या ज़रूर
जिस ने चुराया है जसे वो तो मिरी नज़र में है

शिकवा-ए-तूले-इंतिज़ार शुक्रियाए-वफ़ाए-अहद
दिल की तमाम कैफ़ियत क़तरा-ए-अश्के-तर में है

हाले-मरीज़े-इश्क़ ग़ैर, रात पहाड़ हिज्र की
आए ही गी सहर मगर फ़र्क़ सहर सहर में है

तू कभी जिन को था अज़ीज़ उन को है तुझ से अब हसद
ये भी तो आख़िर ऐ 'वफ़ा' ऐब तिरे हुनर में है।