भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नाव चलाना है / प्रभुदयाल श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
बादल भैया ता-ता थैया,
करके जल्दी आओ।
आँगन सूखा पड़ा हमारा,
जल्दी से भर जाओ।
नाव बनाई है दीदी ने,
बहुत परिश्रम करके,
उसे चलाना है आँगन में,
अब न और सताओ।