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नाशै काल, विनाशै बुद्धि / भुवनेश्वर सिंह भुवन

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आपनॅ देश, आपनॅ धरती,
आपनॅ बगीचा, आपनॅ परती,
आपनॅ खेत, आपनॅ खरिहान,
आपनॅ साँझ, आपनॅ बिहान,
आपनॅ सुख, आपनॅ सपना,
आपनॅ भविष्य, आपनॅ कल्पना,

जानॅ सें बेसी प्यारॅ होय छै।
धरती माय छिकै-”सीता“
सबके?
नै ओकरे-
जें एकरा खून-पसीना सें सींचै छै,
एकरा जरने कानै छै, एकरा हँसने नाचै छै,
माटी केॅ सोनॅ बनाबै छै,
दुनियाँ केॅ खवाबै छै, पिन्हाबै छै।

जें सोना-चानी जकताँ
एकरा तिजोरी में बंद करै छै-
एकरा बेटा सें छीनै छै,
बेचै छै, कीनै छै,
ऊ एकरॅ शत्रु छिकै-”रावण।“

माय के खरीद बिक्री कहीं सुनने रहौ?
छै काँहूँ? धर्मशास्त्रॅ में?
माय के मालिक की?
जेतना सेवा ओतने मेवा!
तोयॅ एकरा लूटै छॅ, उजारै छॅ,
लोभॅ के आगिन सें
सौंसे देश जारै छॅ।

आगिन लहकै छै,
जुआन आस, मस्त अरमान झरकै छै।
झोपड़ी जरै की पक्का,
आगिन लागथैं-
उनचासो पवन हुहुआबै छै,
गुग्गुल उड़ाबै छै,
सगरे धिधियाबै छै।

जबेॅ ई दावानल होय जाय छै,
गीध, भेंड़िया चिकरै छै-
गरजै छै-तेलांगना, नक्शलबाड़ी
भूले छै धोती-साड़ी
बान्है छै टीक-दाढ़ी।

कृष्ण, क्राइस्ट, महात्मा गाँधी केॅ
तोहीं मारल्हौ, तोहीं पूजै छॅ।
काल जेकरॅ प्राण लेल्हौ,
आय ओकरा
दीया लेॅ के खौजै छॅ।

जबेॅ अन्याय के अति होय छै,
मानवता कहरै छै, हुकरै छै,
भगतसिंह के खून खौलै छै,
महात्मा गाँधी के आसन डोलै छै,
होय छै चौरी-चौरा,
तेलांगना, नक्शलबाड़ी।

एक मंजिल के विभिन्न पड़ाव
पुरबा में पाल बाली लाव,
कहाँ छै चंगेज, हिटलर तोजो?
तेलांगना के झंडा,
गामेगाम फहरै छै, लहरै छै,

कोय की करेॅ?
नाशै काल,
बिनाशै बुद्धि।