भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नासदीय सूक्त, ऋग्वेद - 10 / 129 / 1 / कुमार मुकुल
Kavita Kosh से
ओह घरी
असत् ना रहे
सतो ना रहे
तीनों लोको ना रहे
अंतरिक्षो ना रहे
आउर ओकरा पारो
कुछो ना रहे
ताह घरी
सबके ढके वला
आप: तत्व
जलो
कहां रहे ॥1॥
नासदासीन्नो सदासात्तदानीं नासीद्रजो नोव्योमा परोयत्।
किमावरीवः कुहकस्य शर्मन्नंभः किमासीद् गहनंगभीरम् ॥1॥