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ना-कामी-ए-क़िस्मत का गिला छोड़ / मुज़फ़्फ़र 'रज़्मी'

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ना-कामी-ए-क़िस्मत का गिला छोड़ दिया है
तदबीर से तक़दीर का रुख़ मोड़ दिया है

वो जुर्म भी इक अज़मत-ए-किरदार है जिस ने
टूटा हुआ इक रिश्ता-ए-दिल जोड़ दिया है

दिल डूब चला आख़िर-ए-शब ख़ुश्क हैं आँखें
आ जा के सितारों ने भी दम तोड़ दिया है

बहते हुए देखे हैं उधर वक़्त के धारे
रुख़ हम ने इरादों का जिधर मोड़ दिया है

फ़न-कार का एहसास-ए-ज़िया-बार था जिस में
हालात ने वो शीश-महल तोड़ दिया है

अंदाज़-ए-ग़ज़ल आप का क्या ख़ूब है 'रज़्मी'
महसूस ये होता है क़लम तोड़ दिया है