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निगाहों में किसी तस्वीर का होना न हीं अच्छा / अबू आरिफ़
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निगाहों में किसी तस्वीर का होना न हीं अच्छा
जुदाई में मेरे हमदम कभी रोना नहीं अच्छा
पी है जो मय-ए-इश्क तो करना भी एहतराम
रिन्दी में कभी होश का खोना नहीं अच्छा
ऐ गौहर-ए-नायाब मेरे जीस्त के हासिल
तेरे लिए फूलों का बिछौना नहीं अच्छा
टूटे हुए दिल वाले दुनिया को संभाले हैं
सरापा दर्द है उनपे कभी हँसना नहीं अच्छा
ये इश्क इम्तहान है आरिफ़ से हुनर ले
मजनू की तरह सेहरा में भटकना नहीं अच्छा