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निगाहों में समाता जा रहा है / रंजना वर्मा

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निगाहों में समाता जा रहा है
वही बस याद आता जा रहा है

लगे हैं जख़्म कितने ही न जाने
मगर वो मुस्कुराता जा रहा है

बड़ी खामोश सी हैं ये फ़िजायें
वो फिर भी गुनगुनाता जा रहा है

नहीं जो दूर जा कर लौट पाता
उसे ही दिल बुलाता जा रहा है

तसल्ली कोई तो दे जाय उस को
जो तन्हा छटपटाता जा रहा है

घिरी है रात अँधियारी घनेरीग्
दिया बस झिलमिलाता जा रहा है

न पूछो आज तनहाई का आलम
ज़िगर में ग़म समाता जा रहा है