निगाह दोनों की झुक न पायी था सख़्त लम्हा गुजर गया वह / रंजना वर्मा
निगाह दोनों की झुक न पायी था सख़्त लम्हा गुजर गया वह।
नशा मुहब्बत का दिल पर तारी लगी जो ठोकर उतर गया वह॥
थे उसकी नजरों में थोड़े शिकवे हमारी आंखों में कुछ गिला था
निगाह दोनों की झिलमिलाई बहा न आँसू ठहर गया वह॥
चला गया जो फिरा के नजरें नहीं वफ़ा का था कोई वादा
यूँ ही जरा-सी कसक है दिल में जो जख़्म गहरा था भर गया वह॥
कभी ग़मों की न की परस्तिश नहीं लबों से भी आह फूटी
निगाह से हो गया वह ओझल सँवार पर दिल ज़िगर गया वह॥
यही रहा इश्क़ का तकाज़ा यही बची दिल में आरजू थी
निगाह भर देख ले वह उसको लिये तमन्ना ये मर गया वह॥
किसी के ख़्वाबों के चंद क़तरे हमारी उल्फ़त को रास आये
मगर कभी दिल बता न पाया जहाँ की नज़रों से डर गया वह॥
हमारी चौखट पर आके ठिठकीं किसी ने दीं जो हमें दुआएँ
मगर मसर्रत जो उसने पायी उसीसे जैसे सँवर गया वह॥