भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

निज़ामुद्दीन-14 / देवी प्रसाद मिश्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सबकी तरफ़ से लिखने का अंजाम देख लो ।
ये काम कितना बढ़ गया ये काम देख लो ।

कितना ही कहा कह गए तो कितना कम,
कहा कहने को हुआ नाम तो ये नाम देख लो ।

बाज़ार में भी बैठ गए और कहा जी,
जो लग गए वो दाम ज़रा दाम देख लो ।
 
सबकी तरफ़ से बोलने का रोज़गार ये,
हमको जो देखो देख कर नाकाम देख लो ।

मकसद है कोई और तो फिर सोचना फिजूल,
जो सुबह-सी दिख जाए तो ये शाम देख लो ।

अब मार्क्स हो कि माल हो कि कर सको बहस,
अब लालगढ़ को देख लो, आवाम देख लो ।

जो गिर गई मस्जिद तो अब आराम बहुत हो,
अब रह रहे हैं राम तो बदनाम देख लो ।