भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
निठल्ला / दीप नारायण
Kavita Kosh से
एहन लोक केँ कि कहबै अहाँ ?
जे दोसराक औँरी पकरि क'
चलैत अछि
सदिखन अपेक्षाक बोझ माथ पर उघने
सिमसल किछु आस
किछु बेदना छाती मे दबओने
डेग बढ़बैत अछि
केखनो गिरैत अछि
उठैत अछि केखनो
केखनो रुकैत अछि
केखनो चलैत अछि
दोसराक औँरी केँ अपन पैर बुझैत अछि!