भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

निठुर कन्हैया मोरा सूध बिसरवलें से देखहूँ के भइलें सपनवाँ हो लाल / महेन्द्र मिश्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

निठुर कन्हैया मोरा सूध बिसरवलें से देखहूँ के भइलें सपनवाँ हो लाल।
अँगुरी जे धई-धई हमनी नचवनी से अब त भइलें महाराजववा हो लाल।
हमनी जो जनितीं जे स्याम निरमोहिया तऽ पहिले ही किरिया धरइतीं हो लाल।
जब सुधी आवे राम साँवरी सुरतिया कि हिया बीचे मारेला कटरिया हो लाल।
कहत महेन्दर कब ले होइहें मिलनवाँ कि राते-दिन करीले सगुनवाँ हो लाल।