निडर होने के लिए / नंद चतुर्वेदी
यह आशा और उमंग की पतंग है
नक्षत्रों की प्रभा से बनी
लौटेगी नहीं यहाँ इस आँगन में
सारे कैद हुए सपनों और विक्षुब्ध हवाओं के बीच
गलियों के पास जिसने देखा हो
अस्त होते थके सूर्य और उदित होते
क्षोभ रहित चंद्रमा को
अपनी उड़ान के आवेग में जाना हो
बादलों और हवा से रस-मुग्ध बातों का आनंद
तलाश किये हों
यहाँ-वहाँ मनुष्य के लिए पराक्रम के रास्ते, यात्रा के शिखर
डोर तो यहीं है तुम्हारे उड़ान की मेरे हाथ में
पतली, कमजोर और उलझी
आकाश में उड़ने दूँ तुम्हें
या जल्दी-जल्दी डोर समेट लूँ रख दूँ
एक पुरानी, पलास्तर उखड़ी
दीवार की हिलती-सी खूँटी पर
विस्मय से
फिर जब मैं लौटूँ
थकी तीसरे पहर की रोशनी में
तुम्हें देखूँ और उड़ा दूँ, भय मुक्त होने के लिए
जो हर बार आकाश में उड़ पाने को होता है।