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नित्य जो भगवान की अति मधुरतम स्मृति में सना / हनुमानप्रसाद पोद्दार
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नित्य जो भगवान की अति मधुरतम स्मृति में सना।
रहता सदा आनन्द-रत, आनन्दमय खुद ही बना॥
जगत की ज्वाला नहीं सकती जला उसको कभी।
शान्त-शीतल हो चुके संताप बुझ करके सभी॥
जगतके जो लोग आते कभी उसके पास हैं।
वे सभी होते सुखी सत्वर बिना आयास हैं॥
क्योंकि संतत झर रहा झरना सुधाका है वहाँ।
दुःख-संकट-मृत्युका विष रह नहीं सकता वहाँ॥
सुधा-सरिता बह रही नित भागवत सुखकी विमल।
उठ रहीं आनन्दकी लहरें मधुरतम नित प्रबल॥