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निरथक कूकै राजस्थान / कन्हैया लाल सेठिया
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बैवै है
म्हारी तिसाई मरती
धरती रै
असवाड़ै पसवाड़ै
नरमदा, जमना’र गंगा
मिलै जा’र
खारै समद में
अणथाक पांणी,
पण कोनी पसीजै
दिल्ली रो
भाठै जिस्यो हियो
करै कुरस्यां पर
बिराजमान
मोटा मिनख
निकमी हताई,
मरग्या डांगरा
भाजग्या मिनख
हुुगी साव नेठाई,
बापड़ो काळ
भळै के खा ही ?
हुग्यो मतै ही
समस्या रो समाधान
अबै तो
निरथक कूकै राजस्थान !