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निरन्तर साँझ करे शृंगार / सर्वत एम जमाल

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निरन्तर साँझ करे शृंगार
निशा ने पहना चन्दन हार ।

तिमिर किरणों ने बांधे हाथ
उजाला असमंजस में है
धराशायी हैं आदमक़द
सफलता किसके बस में है
ठगे से देख रहें हैं सब
प्रलय का पल-प्रतिपल विस्तार।

निरन्तर साँझ करे शृंगार
निशा ने पहना चन्दन हार ।

सदाशयता का यह अपमान
विदेशी ठप्पे फ़सलों पर
गड़ी हैं ग़ैरों की आँखें
सुरक्षा तक के मसलों पर
सुना है, आने वाले हैं
यहाँ आयातित व्रत-त्यौहार ।

निरन्तर साँझ करे शृंगार
निशा ने पहना चन्दन हार ।

अहिल्या आतंकित भयभीत
चकित हैं जनक-दुलारी आज
खड़ाऊँ फेंकी घूरे पर
भरत ने पहना शाही ताज
निराली कलियुग की है रीति
दशानन लेता है अवतार ।

निरन्तर साँझ करे शृंगार
निशा ने पहना चन्दन हार ।