भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

निरमल दूहा (3) / निर्मल कुमार शर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जोवे टीबा में मोती
फोगां में कस्तूरी जोय
निरमल मूरख बो जाणिये
जो समय आपणो खोय !!२१!!

सदा ही रखे आस पण
कदी करे ना त्याग
निरमल बो नहीं आपणो
बेगो उण ने त्याग !!२२!!

दुष्ट मिनख अर कांटा
दोनूं किचरण जोग होय
नीं इस्या चुभे मन-तन में
निरमल पीड़ अनूथी होय !!२३!!

बिन अनुशासन, शासन नहीं
बिन शासन, नहीं समाज
आपी लड़-लड़ मर जासी
निरमल बचे नहीं बा खाँप !!२४!!

उगतां ने सगला धोके
आथूने झांके ना कोय
निरमल क्यूँ तू भूल रह्यो
सिंझ्या सब री इक दिन होय !!२५!!

संत उणी ने जाणिये
दे सदाचार स्यूं सीख
मजमो लगार बिलमा रह्या
निरमल जावे ना उण दीठ !!२६!!

जो मिनख, मिनख ना बण सके
क्या इस्या मिनख रो काम
बे हुया, ना हुया एक सा
ज्यूँ आकड़ीये रा पान !!२७!!

जीवण मारग कोनी सोरो
इण में खाडा पड्या अनेक
जिण रो चोखो समझ रो पहियो
उण री गाड़ी लगे ना ब्रेक !!२८!!

जद तक दिवले बले है बाती
 भण ले प्रेम रा आखर चार
कद निठे तेल, आ कुण जाणी
निरमल मौको खो मत यार !!२९!!

कदर बगत री जाणिये
बगत बड़ो बलवान
बगत गयाँ, सब ही गयो
तन-धन अर निरमल नाम !!३०!!