निरमल दूहा (5) / निर्मल कुमार शर्मा
सुख अर दुःख, दिन-रात ज्यूँ
इक जावे दूजो आय
निरमल, डरे क्यूँ रात स्यूं
नवो दिन उगसी, बतलाय !!४१!!
होणी तय हर चीज़ री
होणी न टाली जाय
होणी हवे, चोखे कारणे
निरमल, जो समझे, तर जाय !!४२!!
बिन परख्याँ मत बरतिये
बसतु कोई अजाण
पीतल- सोना रे फरक ने
निरमल, तप्याँ सके पैचाण !!४३!!
मिनख न पूरण हवे सके
पूरण हवे ईसर बण जाय
निरमल, जे मिनख ही बण सके
जनम सुफल हुय जाय !!४४!!
निरमल तो है बावलो
बेगो आपो खोय
धीरज-संतोष लुटे, ओ
दिन-दिन निरधन होय !!४५!!
बाँस, बांसुरी न बणे
जद तक, गढ़े न सरजक हाथ
तान सुरीली, तब बजे
जद साधक, फूंके निरमल श्वास !!४६!!
माटी सूँ माटी बणी
माटी में मिल जाय
निरमल माटी न मिटे
ज्ञान सुपातर दीजिये
निरमल, मन हो न शैतान
बम बणे - बिजली बणे
मूळ एक ही जाण !!४८!!
तुरत ही रचना रच सके
उण ने ईसर जाण
निरमल, मिनख न बण सक्यो
क्या रचसी, किण पाण !!४९!!
धाप्योड़ा ने और जिमावे
भूखे ने, मंगतो कह धकियावे
निरमल, बे चैन कदी न पावे
मार आतमा, खुद मर जावे !!५०!!